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देवेन्द्र पाण्डेय

वाराणसी

जड़-चेतन में अभिव्यक्त हो रही अभिव्यक्ति को समझने के प्रयास और उस प्रयास को अपने चश्मे से देखकर आंदोलित हुए मन की पीड़ा को खुद से ही कहते रहने का स्वभाव जिसे आप "बेचैन आत्मा" कह सकते हैं।